यदि किसी को अचानक शरीर पर कही भी चोट, खरोच या रगड लग जाती है तो उस जगह पर लाल रंग का द्रव्य पदार्थ निकलने लगता है जो रक्त या ब्लड कहलाता है।
प्रत्येक मनुष्य के शरीर में साढ़े पांच से छ: लीटर के बीच रक्त होता है
।यह रक्त शरीर में चारो तरफ शरीर के अंगो को ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचता है और उन्हें जिन्दा रखता है एस रक्त के संचार में हृदय, धमनियाँ, शिराए और कोशिकाए कार्य करती है
।
हृदय – हृदय को हम दुसरा नाम दिल से भी जानते है
।कई बार बातचीत में अक्सर यह कहते है हुए सुनते है की मेरा दिल कह रहा है, मेरा दिल सोच रहा था, मेरा दिल उस पर आ गया
, मेरा दिल टूट गया
। वास्तव में आम लोग दिल को सोचने समझने का एक अंग समझते है जो की पूरी तरह गलत है
। सोचने और समझने का कार्य हमारा दिल नही वरन हमारा मस्तिष्क करता है
।शरीर के सभी अंगो पर मस्तिष्क का नियंत्रण रहता है
।
हमारे हृदय का महत्वपूर्ण कार्य पूरे शरीर में रक्त संचार करना है।हृदय हमारे शरीर में एक पम्प की तरह कार्य करता है।यह पम्प मजबूत मांस पेशियों का बना होता है हृदय हमारे शरीर के सभी अंगो में से दूषित रक्त को एकत्र कर फेफड़ो व्दारा शुद्ध करवा कर वापस शरीर के अंगो में पहुँचाने का कार्य करता है।
प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति के शरीर में यह 72 से 80 बार एक मिनट में धडकता है बच्चो में यह 90 से 100 बार एक मिनट में धडकता है। मनुष्य का हृदय मनुष्य की छाती में दो फेफड़ो से घिरा रहता है शरीर में फेफड़ो का कार्य है – रक्त को शुद्ध करना जब हम साँस लेते है तो शरीर में हवा के साथ जो ऑक्सीजन जाती है।खून उस ऑक्सीजन को ग्रहण करता है और कार्बन डाई ऑक्साइड को छोड़ता है जो की साँस छोड़ने पर शरीर से बाहर चली जाती है एक सामान्य व्यक्ति एक मिनट में 12 से 16 बार साँस लेता है।
प्राथमिक सहायता के लिए इन दस संस्थानों में से प्रथम पांच की जानकारी आवश्यक है इसलिए इन पांचो का संक्षिप्त वर्णन नीचे दिया गया है।
1.अस्थि संस्थान – अस्थियो से शरीर को पांच मुख्य लाभ है।
1. शरीर को आकृति देती है।
2. शरीर को दृढ बनती है।
3. शरीर के कोमल अंगो ( मस्तिष्क, आँखे, फेफड़े, इत्यादि ) की रक्षा करती है।
4. अंग चालन में सहायता करती है।
5. अस्थि मज्जा में लाल रक्ताणुओ का निर्माण होता है।
जोड़
रचना – भिन्न – भिन्न अंगो की हड्डिया नाम, आकार, कार्य और दृढता में भिन्न होती है परन्तु फिर भी ये सब एक – दुसरे से एक माला की तरह जुडी होती है एक हड्डी का दूसरी हड्डी से जिस केंद्र पर संबंध स्थापित होता है वहां पर विशेष प्रकार की प्राकृतिक रचना होती है जिसे की हम जोड़ कहते है इस रचना का संक्षिप विवरण निम्नलिखित है –
1. प्रत्येक जोड़ की हड्डियों के बीच कोम्लास्थी की गद्दी लगी होती है।
2. जोड़ के ऊपर एक प्रकार की झिल्ली चढ़ी होती है।
3. झिल्ली के अंदर एक प्रकार का चिकना तरल भरा रहता है।
4. ऊपर से जोड़ बन्धक सूत्रों व्दारा मजबूत बंधारहता है।
जोड़ो के भेद – जोड़ दो प्रकार के होते है।
अचल जोड़ – जैसे खोपड़ी और चेहरे की हड्डियों के जोड़ अचल जोड़ो के भेद – चूंकि अचल जोड़ अपनी जगह पर स्थाई होते है इसीलिए इनकी टूट – फूट या अन्य किसी भी प्रकार की क्षति को ठीककरने की चेष्टा करना एक प्राथमिक सहायक अधिकारी के बीएस की बात नही, इसीलिए इसका वर्णन नही दिया गया है।
सचल जोड़ – जैसे कंधे,कोहनी, अंगुलियों इत्यादि के जोड़
सचल जोड़ो के भेद
1. गेंद कटोरी वाले जोड़ – जैसे कंधे और कूल्हे जोड़।
2. कब्जेदार जोड़ – जैसे कोहनी, घुटने, अंगुलियों के जोड़।
3. फिसलने वाले जोड़ – जैसे कलाई, टखने के जोड़।
4. कीलीदार जोड़ – जैसे खोपड़ी, गर्दन आदि का जोड़।
2. मांस पेशी संस्थान
शरीर के लाल रंग को मांस पेशियाँ कहते है।
1. जोड़ो का बांधना।
2. जोड़ो को गति देना।
जोड़ो को गति देने वाली मांस पेशियाँ निम्न दो प्रकार की होती है ।
1. एक्छिक मांस पेशियाँ – जिन्हें हम अपनी इच्छानुशार गति दे सके जैसे अंगुलियों,हाथो, पैरो इत्यादि को गति देने वाली पेशियाँ।
2. अनैच्छिक मांस पेशियाँ – जो हमारी इच्छा से कार्य न करे अपितु आवश्यकतानुशार स्वयं कार्य करे जैसे हृदय, महाप्रचीरा, भोजन नलिका की मांस पेशियाँ इत्यादि।
3. रक्त परिवहन संस्थान – रक्त संचार में सहायक अंग निम्नलिखित है –
1. हृदय – दोनों स्तनों के मध्य, बाए स्तन से लगभग 2 इंच दूर हृदय स्थित है बंद मुट्ठी के बराबर, ऊपर की ओर चौड़ा बादाम की आकृति का होता है यह दोहरे पम्प का कार्य करता है जो निम्नलिखित है
1. शरीर के अशुद्ध रक्त लेकर फेफड़ो को भरना तथा
2. फेफड़ो से शुद्ध रक्त लेकर शरीर को भेजना
भाग – हृदय के चार भाग होते है जो की रक्त संचार के क्रम से निम्नलिखित है
1. दाहिना अलिन्द – यह भाग दाहिने आलिन्द से प्राप्त अशुद्ध रक्त प्राप्त करता है।
2. दाहिना निलय – यह भाग दाहिने अलिन्द से प्राप्त अशुद्ध रक्त को फेफड़ो में भेजता है, जो वहां शुद्ध होता है।
3. बायाँ अलिन्द – यह भाग फेफड़ो से शुद्ध रक्त प्राप्त करता है।
4. बायाँ नीली – यह भाग शुद्ध रक्त को शरीर में भेजता है हृदय के निलय कोष्ठ सिकुड़ते है तो रक्त दब क्र धमनियों में आगे बढ़ता है हृदय के सिकुड़ने – फैलने को हृदय की धड़कन कहते है हृदय की धड़कन प्रायः कलाई पर (रेडियस अस्थि पर ) देखी जाती है, जिसे नाडी देखना कहते है नाडी देखते समय तीन बातो पर ध्यान देते है –
1. नाड़ी की गति – स्वस्थ मनुष्य की नाडी एक मिनट में 72 बार चलती है।
2. नाडी की शक्ति – रक्त की मात्रा कम होने पर नाडी मन्द हो जाती है।
3. नाडी की नियमितता – स्वस्थ मनुष्य की नाडी नियमित रूप से चलती है केवल अस्वस्थ होने पर ही मन्द और कभी तीव्र हो सकती है।
2. धमनियाँ – धमनियाँ मोटी मजबूत दीवारों वाली रक्त वाहिनी नालियाँ होती है इनमे कपाट लगे होते है ताकि रक्त उल्टा (वापस ) न आ जाए धमनियो में हृदय से शरीर और फेफड़ो को रक्त जाता है हृदय से आगे जाकर यह विभाजित होकर पतली होती जाती है और अन्त में कोशिका बं जाती है।
3. कोशिकाए – कोशिकाए बाल जैसी बारीक अत्यंत पतली दीवारों की रक्तवाहिनी नालियाँ होती है सारे शरीर में इन का जाल फैला हुआ है इनकी दीवारों रन्ध्रमय होती है इसीलिए गैस और तरल पदार्थ रन्ध्रोमें से पार निकल जाते है कोशिकाये शरीर को शुद्ध रक्त प्रदान करती है और अशुद्ध रक्त इकठ्ठा करके आगे शिराओ को भेजती है आगे चलकर यह आपस में मिलकर मोटी हो जाती है और शिराओ का रूप ले लेती है।
4. शिराएं – शिराए धमनियो की अपेक्षा अधिक चौड़ी और पतली दीवारों की रक्तवाहिनी नालियाँ होती है ये शरीर और फेफड़ो से रक्त लेकर हृदय को पहुंचाती है।
रक्तचाप – हृदय के निलय कोष्ठों के सिकुड़ने के कारण ऊँचे दबाव पर रक्त धमनियों में आगे बढ़ता है धमनियों में रक्त के इस दबाव को रक्त चाप कहते है रक्त चाप कम होने से दूरस्थ अंगो को (जैसे अंगुलियाँ और मस्तिष्क को ) रक्त नही पहुँच पाता और रक्त चाप बढ़ने पर धमनियों के फटने का भय रहता है धमनियाँ आगे जाकर विभाजित होती जाती है और शिराओ के रूप में काफी चौड़ी होती है इसीलिए रक्त चाप धमनियों में सबसे अधिक, कोशिकाओ में धमनियो से कम और शिराओ में सबसे कम होता है
शुद्ध रक्त – जिस रक्त में ऑक्सीजन मिली हो उसे अशुद्ध रक्त कहते है इसका रंग चमकदार लाल होता है और यह हृदय के बाए भग में, शरीर की धमनियों में और फेफड़ो की शिराओ में पाया जाता है
अशुद्ध रक्त – जिस रक्त में कार्बन – डाई – ऑक्साइड मिली हो उसे अशुद्ध रक्त कहते है इसका रंग कालिमा मिश्रित लाल होता है और यह हृदय के दाहिने भाग ने शरीर की शिराओ में और फेफड़ो की धमनियों में पाया जाता है
रक्त की रचना – शरीर में लगभग साढ़े पांच लीटर रक्त होता है रक्त के मुख्य अंग निम्नलिखित है –
1. रक्तवारि यह पीले रंग का तरल होता है रक्त को तरल और बहने योग्य बनाए रखता है तथा अनेक रासायनिक पदार्थो और पौष्टिक तत्वों को घोल क्र शरीर में वितरी करता है
2. लाल रक्ताणु – यह गोल डबल रोटी की तरह बीच में पिचके हुए होते है अस्थि मज्जा में पैदा होते है
3. श्वेत रकताणु – ये अनियमित और परिवर्तनशील आकृति के होते है द्रव सिकुड़ करके कोशिकाओ में रन्ध्रो में से बाहर निकल जाते है और अंदर आ जाते है शरीर में प्रवेश करने वाले हानिकारक कीटाणुओ को ये मार डालते है
4. फाइब्रिनोजिन – यह पदार्थ रक्त वारि में घुला रहता है जैसे ही रक्त नालियों से बाहर आता है, वायु के सम्पर्क में आने से ही फाइब्रिनोजिन से फाइब्रीन बन जाता है जो रक्त की थक्का बना देती है स्वस्थ रक्त वाहनियो से रक्त नही जमता दूषित वाहनियो, विशेषकर धमनियों में रक्त जम कर उसकी गांठे बं जाती है इसे थाम्बोसिस कहते है हृदय की थ्राम्बोसिस बहत खतरनाक होती है जिसमे हृदय की धमनियों में रक्त की गांठ होती है
4. श्वास संस्थान – श्वास क्रिय्स में निम्नलिखित अंग सहायता करता है
1. नाक – नाक की झिल्ली में से चिपचिपा पदार्थ निकलता है जो वायु में उपस्थित कीटाणु नष्ट कर देता है नाक के बाल धूल के कणों को रोक लेते है और तालु के ऊपर नासिका गुहा में वायु गर्म होती है इस प्रकार नाक व्दारा फेफड़ो को स्वच्छ कीटाणुरहित, गर्म वायु जाती है
2. कण्ठ – कण्ठ में वायु नालिका और भोजन नालिका प्रारम्भ होती है वायु नालिका आगे की ओर होती है इसका मुँह एक ढक्कन व्दारा ढका रहता है और ठोस तथा द्रव पदार्थो को श्वास नली में नही जाने देता साँस लेते समय यह ढक्कन उठ जाता है और वायु श्वासनली में चली जाती है
3. स्वर यंत्र – इसमें ध्वनि उत्पन्न करने वाले तंतु लगे होते है जो आवाज उत्पन्न करते है
4. टेंटुआ – यह लगभग 6 इंच लंबी नली होती है जिसके व्दारा वायु फेफड़ो को जाती है
5. ब्रौंकाई – टेंटुये की नली दो भागो में बंट जाती है एक भाग बांये फेफड़ो को और दूसरा भाग दाहिने फेफड़ो को वायु ले जाता है
6. श्वास प्रणलिकाये – ब्रौंकाई अनेक शाखाओ और प्रशाखाओ में विभक्त हो जाती है इन्ही प्रशाखाओ को प्रणलिकाये कहते है
7. वायु कोष्ठ – श्वास प्रणलिकाये अन्त में वायु कोष्ठों में समाप्त हो जाती है इं वायु के कोष्ठों के चारो ओर रक्त कोशिकाये होती है यही रक्त और वायु निकट सम्पर्क में आते है और ऑक्सीजन तथा कार्बन – डाई – ऑक्साइड का आदान प्रदान होता है
8. फेफड़े – इन्ही वायु कोष्ठों, रक्त कोशिकाओ और श्वास प्रणालिकायो के समूह को ही फेफड़े कहते है
9. महा प्राचिरा और पसलियों के बीच की मांस पेशियाँ – इन मांस पेशियो के सिकुड़ने से छाती के अंदर का स्थान खाली होता है जिसे भरने के लिए वायु श्वास व्दारा फेफड़ो में जाती है इन मांस पेशियों के फैलने से छाती के अंदर का स्थान कम होता है और श्वास बाहर निकल जाती है
10. श्वास केंद्र – मस्तिष्क के तले का वह भाग श्वास केंद्र कहलाता है जो महाप्रचिरा और पसलियों के बीच की मांस पेशियो की गति का नियंत्रण करता है श्वास की गति एक मिनट में 15 से 18 बार होती है रक्त में कार्बन – डाई – ऑक्साइड की मात्रा बढ़ते ही श्वास – केंद्र श्वास की गति को भी बढ़ा देता है
5. नाडी संस्थान – नाडी संस्थान समस्त शारीरिक क्रियाओ का नियंत्रण करता है।इसके मुख्य अंग निम्नलिखित है
1. मस्तिष्क – मस्तिष्क खोपड़ी में सुरक्षित है यह भूरे रंग का पदार्थ है इसके तीन मुख्य भाग है ।
1. व्रहद मस्तिष्क – यह मस्तिष्क का बड़ा (लगभग 7/8 भाग) है इसके मुख्य कार्य इस प्रकार है
1. अनुभव करना
2. याद करना
3. सोचना
4. स्नेह तथा घ्रणा करना
5. इच्छा करना इत्यादि
2. लघु मस्तिष्क – यह छोटा भाग नीचे और पीछे की ओर होता है यह शरीर का संतुलन रखता है और शारीरिक गति का नियंत्रण करता है
3. सुषुम्ना शीर्षक – सुषुम्ना नाडी का उपर का भाग जो बेलनाकार होता है सुषुम्ना शीर्षक कहलाता है यह शरीर की अनैच्छिक क्रियाओ का नियंत्रण करता है श्वास क्रिया और हृदय की धड़कन सुषुम्ना शीर्षक व्दारा ही नियंत्रित होती है इसीलिए सुषुम्ना शीर्षक में चोट लगते ही तुरंत म्रत्यु हो जाती है
2. सुषुम्ना नाडी – मस्तिष्क से निकले हुए नाडी कोशिकाओ के सिरों से मिलकर लगभग 18 इंच लंबी एक रस्सी जैसी बन जाती है जो सुषुम्ना शीर्षक से रीढ़ की हड्डी की कोशिकाओ में होकर नीचे जाती है शरीर के निम्न भागो के अनुभव का समाचार सुषुम्ना व्दारा ही मस्तिष्क को जाता है और इसी में होकर नीचे जाती है शरीर के निम्न भागो के अनुभव का समाचार सुषुम्ना व्दारा ही मस्तिष्क की जाता है और इसी में होकर गति की आज्ञाओ अंगो तक पहुँचती है शरीर के नीचे के भागो की अनैच्छिक क्रियाओ का नियंत्रण भी सुषुम्ना ही करती है इसी लिए सुषुम्ना को क्षति पहुँचते ही लकवा हो जाता है और शरीर का समबंधित भाग बेकार हो जाता है
3. स्नायु या नाड़िया – नाडी कोशिकाओ के सूत्र जैसे सिरेजो मस्तिष्क के साथ शरीर का संबंध स्थापित करते है नाडी या स्नायु कहलाते है नाडिया दो प्रकार की होती है
1. संवेदनिक स्नायु – जिन नाड़ियो व्दारा ज्ञानेन्द्रियो में मस्तिष्क तक समाचार पंहुचाता है
2. चालक स्नायु – जिन नाड़ियो व्दारा मस्तिष्क में अंग चालन की आज्ञा मांस पेशियाँ तक पहुँचती है