जानिये क्यों खास है ये भारतीय रेलवे स्टेशंस

May 5, 2020, 9:29 AM
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दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क्स में से एक भारतीय रेलवे के नेटवर्क में लगभग 7000 से ज्यादा रेलवे स्टेशंस है। वहीँ एक से दिखने वाले इन सभी रेलवे स्टेशनों में से कुछ रेलवे स्टेशंस ऐसे है जिनकी कहानी थोड़ी दिलचस्प, थोड़ी अलग है। ये भी हो सकता है कि आप उन रास्तों से गुजरे हो मगर उनकी कहानी, उनकी खासियत के बारे में आपको न पता हो। हमारे साथ कीजिए शब्दयात्रा उन भारतीय रेलवे स्टेशनों की—

राशिदपुर खोरी- राजस्थान

ऐसे मुसाफिर देखे हैं कहीं…

राजस्थान में चुरू के रास्ते सीकर की ओर छोटे से ग्रामीण रेलवे स्टेशन (राशिदपुर खोरी) को भारतीय रेलवे ने घाटे के कारण साल 2005 में बंद कर दिया था। रेलवे विभाग के इस निर्णय से स्टेशन के आस-पास के 20000 लोगो का जीवन अचानक से प्रभावित हो गया। इसके बाद स्थानीय लोगों ने अपने रेलवे स्टेशन को पुनः शुरू करवाने के लिए लगभग 4 साल तक हर संभव प्रयास किया। साल 2009 में रेलवे विभाग उस रेलवे स्टेशन को पुनः चालु करने के लिए तैयार हो तो गया मगर एक बहुत ही कठिन शर्त के साथ। शर्त के अनुसार रेलवे ने वहां से 3 लाख सालाना के टिकट की बिक्री का होना अनिवार्य कर दिया। वहीं ऐसा न करने पर रेलवे स्टेशन को पुनः बंद कर देने की बात भी कही।

ग्रामीणों के लिए ऐसा कर पाना पहली नजर में कठिन था मगर नामुमकिन नहीं। सभी स्थानीय लोगों ने इसके उपाय स्वरूप अपनी किसी भी यात्रा के सामान्यत: एक टिकट की जगह 5-10 टिकट खरीद रेलवे की शर्त का हल निकालना शुरू किया।

स्टेशन के शुरू हो जाने के बाद वहां की बाकी सारी जिम्मेवारी जैसे की सुरक्षा, साफ-सफाई पेय-जल की सुविधा भी ग्रामीणों ने अपने कांधो पर ले ली। साल 2009 से ये रेलवे स्टेशन ग्रामीणों के ही द्वारा चलाया जा रहा है। आज भी यहां का हर मुसाफिर 5-5 टिकट लेकर यात्रा करते हैं ताकि रेलवे के निर्धारित लक्ष्य को पूरा किया जा सके। यहाँ बेचने के लिए टिकट भी ग्रामीण दूर दराज के बड़े स्टेशन से खुद लेकर आते है। रोज़ाना यहां से सिर्फ 02081 (जयपुर-चुरू) एक सवारी गाड़ी का आवागमन होता है।

पश्चिम बंगाल- वर्धमान

इस स्टेशन को क्या नाम दें……

वर्ष 2008 में भारतीय रेलवे ने पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के एक रेलवे स्टेशन का नवीनीकरण करवाया। शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर ग्रामीण इलाके में बना ये रेलवे स्टेशन उसके ठीक बाद विवादों में फंस गया। विवाद भी ऐसा जिस वजह से आजतक इस रेलवे स्टेशन का नामाकरण ही नहीं हो पाया। दरअसल विवाद की वजह इस रेलवे स्टेशन के पास बसे दो गांवों रैना एवं रैनागढ़ के अधिकार क्षेत्र की लड़ाई है।

दरअसल स्टेशन का क्षेत्र दोनों गांवों की सीमा के बीच पड़ता है इसलिए रैनागढ़ वाले स्टेशन का नाम अपने गांव के नाम पर रखना चाहते है, वहीं रैना वाले अपने गांव के नाम पर। नवीनीकरण से 8 वर्ष पहले तक ये रेलवे स्टेशन रैनागढ़ के नाम से जाना जाता था क्योंकि ये उसके नजदीक था। मगर इसके पुनः निर्माण के समय इसे 200 मीटर रैना गांव की तरफ आगे बढ़ाकर बना दिया गया। जिस वजह से पूरा विवाद उत्पन्न हुआ। फिलहाल मामला रेलवे बोर्ड के अधीन है। यहां से मिलने वाली टिकट पर आज भी रैनागढ़ का नाम ही छपता है। ये स्टेशन बांकुरा-दामोदर रेलमार्ग पर पड़ता है।

ताजनगर- हरियाणा

वाह ताज़नगर कहिए जनाब…..

हरियाणा के गुरूग्राम जिले में पड़ने वाले ताज़नगर में कुछ साल पहले तक रेलवे स्टेशन नहीं था। स्थानीय लोगों ने अपने स्तर से हर प्रयास किया मगर सभी में उन्हें असफलता का मुंह देखना पड़ा। आखिर में हारकर वहां के निवासियों ने स्वयं के लिए खुद ही रेलवे स्टेशन बनाने का निर्णय लिया। ताजनगर के सभी घरों से इस बाबत 3000 का चंदा कर लोगों ने कुल 5.6 लाख रूपये जमाकर एक छोटा सा रेलवे स्टेशन बनाया। इन रूपयों को वहां जमीन खरीदने, प्रोजेक्ट रिर्पोट बनाने डिस्पले बोर्ड बनाने आदि के काम में लाया गया। बाद में स्थानीय लोगो ने रेलवे विभाग से वहां कुछ रेलगाडि़यों का परिचालन करने की मांग की। आज वहां से 7-8 लोकल ट्रेनों का आवागमन होता है। ये रेलवे स्टेशन दिल्ली-जयपुर रेलवे मार्ग पर स्थित है।

भवानी मंडी- कोटा

यहां प्लेटफार्म बदलने से बदल जाता राज्य…..

इसके एक तरफ है राजस्थान तो दुसरी तरफ है मध्य प्रदेश। जी हां!, भवानी मंडी रेलवे स्टेशन वैसे तो राजस्थान राज्य के कोटा जिले के अंतर्गत गिना जाता है। मगर इसकी भौगोलिक संरचना ऐसी है कि ये दो राज्य राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच बंट जाता है। इसके उत्तर की तरफ निर्मित रेलवे प्लेटफार्म जहां मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में पडता है वहीं दक्षिण का प्लेटफार्म राजस्थान के झालावार जिले में आता है। ऐसा ही मिलता-झूलता एक नज़ारा महाराष्ट्र के बेलापुर और रेलवे स्टेशन में भी है।

Source – RailYatri

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